17 August 2016

हमारे बोले गए शब्द 1000 गुना शक्तिशाली बन कर ब्रम्हाण्ड के शब्द बन सकते हैं पर .......

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(A) हमारे बोले गए शब्द 1000 गुना शक्तिशाली बन कर ब्रम्हाण्ड के शब्द बन सकते हैं पर .......
(B) हम परेशान रहते हैं कि कोई हमारी बात सुनता क्योँ नहीं ?

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हम अपने बोले गए शब्दों को 1000 गुना शक्तिशाली बना कर ब्रम्हाण्ड के शब्द बना सकते हैं अगर, अगर, अगर हम अपने द्वारा बोले गए शब्दों को बोलने से पहले उन पर खुद अमल कर रहे हैं तो.

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कुछ उदाहरण लेते हैं, जैसे निम्नलिखित शब्दों का दूसरों (हमारे घर के माता, पिता, बच्चे, पत्नी, पति, अड़ोसी, पड़ोसी, रिस्तेदार, दोस्त, यार, students, इत्यादि) पर कोई असर नहीं पड़ने वाला :-

(1) अगर हम खुद झूठ बोलते हैं और दूसरों को झूठ न बोलने के लिए कह रहे हैं.
(2) अगर हम खुद सुबह नहीं उठ रहे हैं और दूसरों को सुबह उठकर पढ़ाई या exercise करने के लिए कह रहे हैं.
(3) अगर हम खुद नशा (बीड़ी, सिगरेट, तम्बाकू, दारू) कर रहे हैं और दूसरों को इनसे दूर रहने के लिए कह रहे हैं.
(4) अगर हम खुद अपनी knowledge बढ़ाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं और दूसरों को knowledge बढ़ाने या पढ़ाई करने के लिए कह रहे हैं.
(5) अगर हम खुद दूसरों की बुराई करते हैं और दूसरों को किसी की बुराई न करने के लिए कह रहे हैं.


मित्रों इसी तरह के हजारों example हमारी जिंदगी में रोज घटते हैं और हम परेशान रहते हैं कि कोई भी (हमारे घर के माता, पिता, बच्चे, पत्नी, पति, अड़ोसी, पड़ोसी, रिस्तेदार, दोस्त, यार, students, इत्यादि) हमारी बात सुनता क्योँ नहीं ?,

मित्रों जब हम वो काम खुद कर रहे हैं और दूसरों को उसका उल्टा करने के लिए कह रहे हैं, तो हम अपने "शब्दों में वो तरंगे पैदा नहीं कर पाते" जिससे की हमारे "शब्द 1000 गुना शक्तिशाली बने."

थोड़ा सा विस्तार में इसे समझते हैं :-
एक बार एक औरत अपने बच्चे को एक महात्मा के पास ले कर गई और बोला की महात्मा जी "ये बच्चा चीनी बहुत खाता है, आप इसे चीनी खाने से मना करो." महात्मा ने कहा कि अगले हफ्ते आना. अगले हफ्ते वो महिला फिर से उस बच्चे को ले कर उस महात्मा के पास गई और बोली कि महात्माजी इस बच्चे को आप "चीनी खाने से मना करो." महात्मा ने तुरंत बच्चे को चीनी खाने से मना किया और चीनी ज्यादा खाने के अवगुण भी बताये. तब उस महिला ने महात्मा से पूछा कि "यही बात आप पिछले हफ्ते भी तो कह सकते थे." तब उन महात्मा ने कहा कि "पिछले हफ्ते तक मैं भी चीनी बहुत खाता था, तब कैसे मैं इस बच्चे को उस काम के लिए मना कर सकता था. अब क्योँकि मैंने चीनी खानी बिलकुल छोड़ दी है, अब मैं इस बच्चे को क्या पूरी दुनिया को चीनी न खाने के लिए कह सकता हूँ, क्योँकि अब मेरे द्वारा बोले जाने वाले "शब्दों में तरेंगे पैदा हो गई है" और उनमें "1000 गुना ताकत के साथ साथ ब्रम्ह की ताकत" भी समा गई है.

मित्रों ध्यान रहे जिसको भी हम कोई भी बात बोलते हैं तो सबसे पहले वो हमें अच्छी तरह से, जी हाँ अच्छी तरह से scan करके ये देखता है कि ये व्यक्ति बोलने से पहले बोली गई बातों में खुद भी अमल कर रहा है की नहीं. उसके सामने वाले को "सृस्टि द्वारा निर्मित automatic system" से "बोले गए शब्दों के भाव से ही तरंगे" आने या न आने का पता चल जाता है.

"इसका बहुत बढ़िया उदहारण हम सब लोग स्कूल, कॉलेज में भी देख सकते हैं कि जब एक ही subject के एक ही chapter को दो अलग अलग टीचर पढ़ाते हैं तो पढ़ाई गई चीज का असर हमारे ऊपर कैसा पड़ता है."

इसी प्रकार मित्रों, जब कभी भी हम अपने जीवन में किसी को कोई बात बोलें तो ये ध्यान रहे कि हम उस बात पर पूरा अमल करते हों, अन्यथा "बोले गए शब्द" बेकार हैं, उनका कोई औचित्व नहीं.

हम अपने "शब्दों में 1000 गुनी ताकत" दें सकते हैं पर हम जो भी बोलें, उन बातों पर हमें खुद भी अमल करना ही करना होगा.

मित्रों शब्द वही - पर अंतर 1000 गुना का. अगर उन्हीं शब्दों को कोई "उस बात को अमल करने वाला बोले" और "उस बात को अमल न करने वाला बोले" तो .


क्या हमारे ऊपर महापुरुषों की बातों का असर नहीं होता. जी हाँ, बिलकुल होता है. पर उनकी हर बात का असर नहीं होता. हमारे ऊपर उनकी उन्ही बातों का असर होता है जिन बातों पर उन्होंने खुद अमल किया हो. पर जिन बातों पर इन्होंने भी अमल नहीं किया और बोला हो, तो मित्रों मान कर चलिए उन बातों का हम लोगों के ऊपर कभी भी कोई असर नहीं होता.

किसी ने सही कहा है :

"शब्दों" की ताकत तो "बोलने की तरंगों" के भाव से पता चलती है...
वर्ना Welcome तो पैर पोंछने के पायदान पर भी लिखा होता है...

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साभारः Self Motivation

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