हमारे जीवन में अलग अलग परिस्थितियां आती रहती है कुछ कठिन तो कुछ सरल. सरल बाले में तो हमें पता भी नहीं चलता कि हम कैसे इससे उबर गए पर जैसे ही कठिन परिस्थिति की बात आती है हम हार मानने लग जाते हैं. हमें प्रतिदिन इन सब का सामना करना पड़ता है अब हमारे पास option ये होता है कि या तो इसे अपना साथी बना लें या इससे डर कर भाग जाएँ. अगर आप भागोगे तो कब तक ? एक से निकलोगे दुसरे में अटक जाओगे. तो क्यों न कठिन परिस्थितियों का डट कर मुकाबला किया जाये और इसे अपना दोस्त बना लिया जाये. तभी तो कहते हैं सब कुछ आसान है.
आइये पढ़ते हैं एक कहानी ...........
अपने रंग में दुनिया को रंग दें - Inspiratioanl Story in Hindi !
एक बार किसी जगह पर एक पिता अपनी बेटी के साथ रहता था. दोनों में काफी प्यार था और दोनों काफी मिलजुलकर रहते थे. एक दिन बेटी ने अपने पिता से शिकायत करने लगी कि उसकी ज़िन्दगी बहुत ही उलझी हुयी है. और कहने लगी "मैं बहुत थक गयी हूँ अपनी ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते. जब भी कोई एक परेशानी खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है. कब तक लड़ती रहूंगी इन सब से." वह काफी परेशान लग रह रही थी.
यह सब सुनके पिता ने कहा मेरे साथ आओ, और रसोई में चले गए. बेटी भी अपने पिता के कहे अनुसार रसोई में अपने पिता के सामने खड़ी हो गयी. उसके पिता ने बिना कुछ कहे तीन बर्तनों में पानी भरकर अलग अलग चुल्हों पर उबालने रख दिया. एक बर्तन में आलू, एक में अण्डे और एक में coffee bean के टुकड़े डाल दिए. और बिना कुछ कहे बैठ के बरतनों को देखने लगे.
20 मिनट के बाद उसने चुल्हे बंद कर दिए. एक प्लेट में आलू, एक में अण्डे और एक कप में कॉफ़ी रख दी. और अपनी बेटी की तरफ घूमकर पूछा - तुमने क्या देखा?
बेटी ने हंसकर जवाब - आलू, अण्डे और कॉफ़ी.
उसने बड़े उत्सुकता के अपने पिता से पूछा - इन सब चीज़ों का क्या मतलब है?
इसपर उसके पिता ने समझाया. आलू, अण्डे और कॉफ़ी तीनो एक ही परिस्थिति से गुजरे थे, तीनों को एक जैसे ही उबाला था. परन्तु जब बाहर निकाला तो तीनों की प्रतिक्रिया अलग-अलग थी.
जब अण्डे को रखा था तब वो अन्दर से पानी की तरह तरल था परन्तु उबालते ही सख्त हो गया.
उसी तरह जब कॉफ़ी के दानों को डाला था तब वो सब अलग-अलग थे मगर उबालते ही सब आपस में घुल गए और पानी को भी अपने रंग में रंग दिया.
ठीक इसी तरह ज़िन्दगी में भी अलग-अलग परिस्थितियां आती है. जब आपको खुद ही फैसला करना होता है कि आपको किस परिस्थिति को कैसे सम्भालना है.
वास्तव में जब कठिनाई हमारी है तो इसका हल भी हमारा होना चाहिए. लेकिन जैसे ही हम प्रतिकूल स्थिति में आते हैं अपना धैर्य खो चुकते हैं और बाद में ये हमें इतना कठिन लगने लगता है जैसे यह असंभव हो. सच तो ये कि न तो यहाँ कुछ आसान होता है और न कठिन. ये हमारी सोच पर निर्भर करता है कि हम उसे आसान मानते हैं या कठिन.