आज शिक्षक दिवस है और अगर आज हम ये पढ़ रहे हैं तो इसमें उनका (गुरु का) एक बड़ा योगदान है. उनका योगदान हमारे भविष्य को उज्ज्वल बनाने में सहायक है. आइये पढ़ते इस कहानी को.......
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गुरु का स्थान ! |
राजा ने एक दिन हिम्मत करके गुरूजी के सामने अपनी जिज्ञासा रखी, ” हे गुरुवर , क्षमा कीजियेगा , मैं कई महीनो से आपसे शिक्षा ग्रहण कर रहा हूँ पर मुझे इसका कोई लाभ नहीं हो रहा है. ऐसा क्यों है ?”
गुरु जी ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया, ” राजन इसका कारण बहुत ही सीधा सा है…”
” गुरुवर कृपा कर के आप शीघ्र इस प्रश्न का उत्तर दीजिये “, राजा ने विनती की.
गुरूजी ने कहा, “राजन बात बहुत छोटी है परन्तु आप अपने ‘बड़े’ होने के अहंकार के कारण इसे समझ नहीं पा रहे हैं और परेशान और दुखी हैं. माना कि आप एक बहुत बड़े राजा हैं. आप हर दृष्टि से मुझ से पद और प्रतिष्ठा में बड़े हैं परन्तु यहाँ पर आप का और मेरा रिश्ता एक गुरु और शिष्य का है. गुरु होने के नाते मेरा स्थान आपसे उच्च होना चाहिए, परन्तु आप स्वंय ऊँचे सिंहासन पर बैठते हैं और मुझे अपने से नीचे के आसन पर बैठाते हैं. बस यही एक कारण है जिससे आपको न तो कोई शिक्षा प्राप्त हो रही है और न ही कोई ज्ञान मिल रहा है. आपके राजा होने के कारण मैं आप से यह बात नहीं कह पा रहा था.
कल से अगर आप मुझे ऊँचे आसन पर बैठाएं और स्वंय नीचे बैठें तो कोई कारण नहीं कि आप शिक्षा प्राप्त न कर पायें.”
राजा की समझ में सारी बात आ गई और उसने तुरंत अपनी गलती को स्वीकारा और गुरुवर से उच्च शिक्षा प्राप्त की .
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अगर आप इसे पढ़ सकते हैं तो शिक्षक को धन्यवाद कहें. |
दोस्तों इस कहानी से हमें पता चलता है की इस सारे जहाँ में गुरु का स्थान सबसे उच्च है और हमेशा रहेगा. न तो धन और न ही वैभव उनके स्थान को निचे कर सकता है. हमें सदा उनका आदर करना चाहिए क्योंकि आज हम जो कुछ भी हैं या आगे बनेगें उनमे उनका एक महत्त्वपूर्ण योगदान है.
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