पेश है एक प्रेरणादायक कहानी- "मेहनत की आदत".....................................
एक बार की बात है की एक आदमी जो पेशे से दुकानदार था बड़ा दुखी रहता था क्यूंकी उसका बेटा बहुत आलसी और गेरजिम्मेदार था वह हमेशा दोस्तों के साथ मस्ती करता रहता था. जबकि वह अपने पुत्र को एक मेहनती इंसान बनाना चाहता था. वह काफ़ी बार अपने पुत्र को डाँटता था लेकिन पुत्र उसकी बात पे ध्यान नहीं देता था.
अबकी बार लड़का रोते हुए बड़ी बहन के पास गया तो बहन ने दस रुपये दे दिए. लड़के ने फिर शाम को पैसे लाकर पिता को दिखा दिए. पिता ने कहा कि जाकर कुएँ में डाल दो लड़के ने फिर डाल दिए.
एक दिन उसने अपने पुत्र से कहा कि आज तुम घर से बाहर जाओ और शाम तक कुछ अपनी मेहनत से कमा के लाओ नहीं तो आज शाम को खाना नहीं मिलेगा.
लड़का पहुत परेशान हो गया वह रोते हुए अपनी माँ के पास गया और उन्हें रोते हुए सारी बात बताई माँ का दिल पासीज गया और उसने उसे एक सोने का सिक्का दिया कि जाओ और शाम को पिताजी को दिखा देना. लड़के ने वैसे ही किया शाम को जब पिता ने पूछा की क्या कमा कर लाए हो तो उसने वो सोने का सिक्का दिखा दिया.
पिता ने मुस्कुराते हुए कहा कि यही तो मैं तुम्हें सीखाना चाहता था तुमने सोने का सिक्का तो कुएँ में फेंक दिया लेकिन दो रुपये फेंकने में डर रहे हो क्यूंकी ये तुमने मेहनत से कमाएँ हैं.
हमें इस कहानी से सिख मिलती है कि जब तक हम खुद से मेहनत नहीं करते हैं तब तक इसका महत्त्व हमें पता नहीं चलता है. हम अपने माता-पिता की कमाई पर मौज मस्ती करते रहते हैं और हम तक जानने की कोशिश नहीं करते हैं की ये पैसे कितनी मेहनत के बाद आये हैं.
पिता यह देखकर सारी बात समझ गया. उसने पुत्र से वो सिक्का कुएँ मे डालने को कहा, लड़के ने खुशी खुशी सिक्का कुएँ में फेंक दिया. अगले दिन पिता ने माँ को अपने मायके भेज दिया और लड़के को फिर से कमा के लाने को कहा.
अब पिता ने बहन को भी उसके ससुराल भेज दिया. अब फिर लड़के से कमा के लाने को कहा. अब तो लड़के के पास कोई चारा नहीं था वह रोता हुआ बाजार गया और वहाँ उसे एक सेठ ने कुछ लकड़ियाँ अपने घर ढोने के लिए कहा और कहा कि बदले में दो रुपये देगा.
अबकी बार पिता ने दुकान की चाबी निकल कर बेटे के हाथ में देदी और बोले की आज वास्तव में तुम इसके लायक हुए हो. क्यूंकी आज तुम्हें मेहनत का अहसास हो गया है